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समन्वय से बनेगा जिला और मंडल अध्यक्ष

भोपाल । संगठन चुनाव में जुटी भाजपा समन्वय से जिला और मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति करेगी। पार्टी ने इसके लिए सांसदों और विधायकों से भी जिला और मंडल अध्यक्ष के दावेदारों का नाम मांगा है। नाम आने के बाद नामों पर चर्चा की जाएगी और समन्वय से जिला और मंडल अध्यक्षों को नियुक्त किया जाएगा। पार्टी नेताओं का कहना है कि  जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष सभी कुछ नियम से ही बनेंगे। लेकिन ऐसा भी नहीं होगा कि सांसद-विधायक की मर्जी के खिलाफ या उनके किसी विरोधी को पद दे दिया जाए। कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि जिसे पद दिया जा रहा है वह न तो पूरी तरह एंटी हो। न ही ऐसा हो कि सांसद और विधायक के कहने पर ही पद दे दिया जाए। ऐसा प्रयास किया जाए कि जो नाम उभरकर आए, उस पर सहमति बन सके।
गौरतलब है कि भाजपा ने सक्रिय, सशक्त और समर्पित कार्यकर्ताओं को मंडल और जिलाध्यक्ष बनाने का फैसला लिया है। इसके तहत निर्णय लिया गया है कि सांसद-विधायकों द्वारा थोपे गए नेता को मंडल और जिलाध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा। हालांकि भाजपा के आला नेताओं ने भले ही सांसद-विधायकों की पंसद के कार्यकर्ताओं को मंडल और जिलाध्यक्ष पद न देने की बात कही है पर इन पदों के लिए उनकी राय लेने का काम शुरू हो गया है। इसे लेकर पार्टी संभागवार बैठकें कर रही है। इसकी शुरुआत भोपाल से हुई। प्रदेश भाजपा कार्यालय में क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल ने भोपाल संभाग के विधायकों से चर्चा कर मंडल और जिला अध्यक्ष के चुनाव में समन्वय बनाने की बात कही। इसके बाद जामवाल प्रदेश के सभी संभागों का दौरा करके वहां बैठक लेंगे। जामवाल ने बैठक में सभी विधायकों से अपने-अपने नाम चुनाव अधिकारी को देने के साथ ही इन नामों पर समन्वय बनाने की बात कही। अगर समन्वय नहीं बनाता है तो पार्टी सामंजस्य बनाने का प्रयास करेगी। हालांकि पार्टी ने इन पदों को सासंदों, विधायकों के परिजनों को न देने की बात कही है। आज इंदौर संभाग की बैठक होगी।

डॉ. सरोज पांडे को बनाया गया पर्यवेक्षक
संगठन चुनावों के लिए पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. सरोज पांडे को पर्यवेक्षक बनाया गया है। डॉ. पांडे दिसम्बर माह में सभी संभागों का दौरा करके बैठक लेंगी। इस दौरान डॉ. पांडे सभी सांसदों विधायकों और संगठन पदाधिकारियों से वन-टू-वन चर्चा करेंगी। इसके बाद ही इन पदों पर नियुक्तियां की जाएंगी। संगठन द्वारा मंडल एवं जिला अध्यक्ष के नामों को लेकर जो नियम बनाए है जिसमें उम्र का काईटेरिया तय किया है उस हिसाब से कई लोग बाहर हो सकते है। वही पुराने मंडल एवं जिला अध्यक्षों की फिर मौका मिल सकता है। इसके लिए उन मंडल एवं जिला अध्यक्षों के क्षेत्र में किए गए पार्टी संगठन के कामों और विधानसभा, लोकसभा चुनाव में उनके योगदान का आंकलन किया जाएगा। क्षेत्र के विधायक एवं सांसद पुराने मंडल और जिला अध्यक्ष के नाम को लेकर सहमति जताते है तो फिर उन्हें मौका मिल सकता है। पार्टी के संविधान में इस बात की व्यवस्था है कि एक व्यक्ति लगातार दो बार पद पर रह सकता है।

विधायकों की पंसद को ज्यादा तरजीह
भाजपा भले ही विधायकों की पसंद के कार्यकर्ता को मंडल अध्यक्ष का पद न देने की बात करें पर संगठन चुनाव शुरू होते ही विधायक अपनी पसंद के कार्यकर्ताओं को मंडल अध्यक्ष बनाने को लेकर सक्रिय हो गए है। हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम आठ से दस मंडल आते हैं। इन मंडल अध्यक्षों की विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका रहती है, लिहाजा विधायक अपनी पसंद के कार्यकर्ता को ही मंडल अध्यक्ष का पद देने के लिए पूरा जोर लगा दते है। पार्टी भी विधानसभा चुनाव हर हाल में जीतना चाहती है, यही वजह है कि वह भी विधायकों की पंसद को ज्यादा तरजीह देती है। पिछली बार हुए संगठन के चुनाव में भी सांसद- विधायक की पसंद के कार्यकर्ता ही मंडल अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए थे। इस बार भी संगठन ने विधायकों से नाम मांगे है। माना जा रहा है कि विधायकों द्वारा दिए गए अधिकांश नामों पर ही समन्वय बनाने का प्रयास किया जाएगा। इस मामले में सांसद की भी राय ली जाएगी।

दोनों पदों के लिए आयु सीमा बढ़ाई
गौरतलब है कि संगठन चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने दोनों पदों के लिए आयु सीमा 10-10 साल बढ़ा दी। अभी तक मंडल अध्यक्ष के लिए उम्र सीमा 35 और जिलाध्यक्ष के लिए 50 थी। पार्टी नेताओं का कहना है कि उम्र का यह पैमाना कोई संविधान नहीं हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है, कि 35 साल तक कार्यकर्ता युवा मोर्चा में काम करता है, इसके बाद वो मंडल में आए। मंडल अध्यक्ष चाहे तो पदाधिकारी किसी भी उम्र का बना सकता है। यही बात जिलाध्यक्ष में लागू हो जाएगी। मंडल में 45 तक काम करने वाला कार्यकर्ता जिले में आ जाएगा। उधर, विधायकों से कहा गया है कि विधायक किसी भी व्यक्ति को पद देने का पहले से वादा ना करें। ऐसा करने से मनमुटाव होता है। क्षमतावान, विचारवान लोगों को संगठन में लेकर आइए।

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